||श्री स्वामी समर्थ अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र ||
श्री अक्कलकोटनिवासी परमसद्गरू
श्री गजानन महाराज विरचित
श्री स्वामी समर्थ अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र
नृसिंह: काश्यपो योगी स्वामीनाथो यतीश्रर:।
प्रज्ञापुरनिवासी च चिरंजीवी दिगम्बर: ॥१॥
कौपीनधारी संयसि समर्थों ज्ञानभास्कर:।
नारायणस्वरूपी च धनदाराविवर्जित: ॥२॥
सर्वसड्गपरित्यागी भक्तानां ज्ञानदो गुरू:।
ब्रह्मीन्द्रो ब्राह्मणो ज्ञानी क्षेत्रज्ञ: सुरवन्दित: ॥३॥
वन्दनीय: पूजनीयो दून्द्वातीतों जगद्गरू:।
सर्वज्ञ: सर्वसाक्षी च सर्वातीत सुरेश्वर: ॥४॥
लम्बोदरों विशालाक्षो गोपालो धर्मरक्षक:।
आजानुबाहुधर्मज्ञ: शीघ्रगामी मलान्तक: ॥५॥
वेदान्ती तत्त्ववेत्ता च वेदवेदाड्गपारग:।
धर्माचार्यो गुरुश्रेष्ठः पण्डितानां शिरोमणि: ॥६॥
प्रसन्नवदन: प्रवाट् प्राज्ञ: प्रज्ञापुरेश्वर:।
कामजित् क्रोधजित् त्यागी नित्यमुक्तस्सदाशिवः ॥७॥
मायातीतो महाबहर्महायोगी महेश्वर:।
कषाय वस्त्रः कामादिर्दम्भःऽहंकारवार्जितः ॥८॥
मुण्डी तूर्याश्रमी हंसो ध्यानयोगपरायण:।
ध्यन्योगी ध्यन्सिद्धो निर्विकल्पो निरज्जन: ॥९॥
गीतापुस्तकधारी च गीतापाठपवर्तक:।
गीताशास्त्रविशेषज्ञो गीताशास्त्रखिवर्धन: ॥९०॥
शिव: शिवकरः शैबः ब्रह्माविष्णुशिवात्मक:।
हरिप्रियो हरिरूप: पाण्डुरड्डसखस्तथा ॥११॥
जगद्रूपो जगद्वन्द्यो जगत्पूज्यो जगत्सख:।
जगदूबन्धु: जगत्पुत्रो जगन्माता जगत्पिता ॥१२॥
मुक्तसड्गस् सदामुक्तो मुनिमौनिपरायण:।
गोविन्दो गोविदां श्रेष्ठो महासिद्धो महामुनि: ।।१३।।
त्रिदण्डी दण्डरहितों वर्णाश्रमविवर्जित:।
मन्त्रकर्ता मन्त्रवेत्ता जपयोगी जपप्रिय: ॥१४॥
अक्रोध: सात्विकः शान्तो ज्ञानमुद्राप्रदर्शक।
भक्तांना वरदाता च भक्तानां मार्गदर्शक: ॥१५॥
एतानि मधुनामानि स्वामिराजमहात्मन:।
यो नर: पठते नित्यं स सुखं चिर्मश्नुते ॥१६॥
॥ इति श्री अक्कलकोटनिवासी परमसदूगुरू
श्री गजाननमहाराज विरचितं श्री स्वामी समर्थ
अष्टोत्तरशतनामावली संपूर्ण ॥