Tulsi Chalisa | श्री तुलसी चालीसा

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॥ श्री तुलसी चालीसा ॥

॥ दोहा ॥
श्री तुलसी महारानी । करूं विनय सिरनाय।
जो मम हो संकट विकट । दीजै मात नशाय।।

॥ चौपाई ॥
नमो नमो तुलसी महारानी । महिमा अमित न जाय बखानी।
दियो विष्णु तुमको सनमाना । जग में छायो सुयश महाना।।

विष्णुप्रिया जय जयतिभवानि । तिहूँ लोक की हो सुखखानी।
भगवत पूजा कर जो कोई । बिना तुम्हारे सफल न होई।।

जिन घर तव नहिं होय निवासा । उस पर करहिं विष्णु नहिं बासा।
करे सदा जो तव नित सुमिरन । तेहिके काज होय सब पूरन।।

कातिक मास महात्म तुम्हारा । ताको जानत सब संसारा।
तव पूजन जो करैं कुंवारी । पावै सुन्दर वर सुकुमारी।।

कर जो पूजा नितप्रति नारी । सुख सम्पत्ति से होय सुखारी।
वृद्धा नारी करै जो पूजन । मिले भक्ति होवै पुलकित मन।।

श्रद्धा से पूजै जो कोई । भवनिधि से तर जावै सोई।
कथा भागवत यज्ञ करावै । तुम बिन नहीं सफलता पावै।।

छायो तब प्रताप जगभारी । ध्यावत तुमहिं सकल चितधारी।
तुम्हीं मात यंत्रन तंत्रन में । सकल काज सिधि होवै क्षण में।।

औषधि रूप आप हो माता । सब जग में तव यश विख्याता ।
देव रिषी मुनि औ तपधारी । करत सदा तव जय जयकारी।।

वेद पुरानन तव यश गाया । महिमा अगम पार नहिं पाया।
नमो नमो जै जै सुखकारनि । नमो नमो जै दुखनिवारनि।।

नमो नमो सुखसम्पति देनी । नमो नमो अघ काटन छेनी।
नमो नमो भक्तन दुःख हरनी । नमो नमो दुष्टन मद छेनी।।

नमो नमो भव पार उतारनि । नमो नमो परलोक सुधारनि।
नमो नमो निज भक्त उबारनि । नमो नमो जनकाज संवारनि।।

नमो नमो जय कुमति नशावनि । नमो नमो सुख उपजावनि।
जयति जयति जय तुलसीमाई । ध्याऊँ तुमको शीश नवाई।।

निजजन जानि मोहि अपनाओ । बिगड़े कारज आप बनाओ।
करूँ विनय मैं मात तुम्हारी । पूरण आशा करहु हमारी।।

शरण चरण कर जोरि मनाऊं । निशदिन तेरे ही गुण गाऊं।
करहु मात यह अब मोपर दाया । निर्मल होय सकल ममकाया।।

मंगू मात यह बर दीजै । सकल मनोरथ पूर्ण कीजै।
जनूं नहिं कुछ नेम अचारा । छमहु मात अपराध हमारा।।

बरह मास करै जो पूजा । ता सम जग में और न दूजा।
प्रथमहि गंगाजल मंगवावे । फिर सुन्दर स्नान करावे।।

चन्दन अक्षत पुष्प् चढ़ावे । धूप दीप नैवेद्य लगावे।
करे आचमन गंगा जल से । ध्यान करे हृदय निर्मल से।।

पाठ करे फिर चालीसा की । अस्तुति करे मात तुलसा की।
यह विधि पूजा करे हमेशा । ताके तन नहिं रहै क्लेशा।।

करै मास कार्तिक का साधन । सोवे नित पवित्र सिध हुई जाहीं।
है यह कथा महा सुखदाई । पढ़े सुने सो भव तर जाहीं ।।

॥ दोहा ॥
यह श्री तुलसी चालीसा पाठ करे जो कोय।
गोविन्द सो फल पावही जो मन इच्छा होय।।

।। इति श्री तुलसी चालीसा ।।

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