Mrityunjay Chalisa | मृत्युंजय चालीसा

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।। मृत्युंजय चालीसा ।।

।। दोहा ।।
मृत्युंजय चालीसा यह जो है गुणों की खान।
अल्प मृत्यु ग्रह दोष सब तन के कष्ट महान।
छल व कपट छोड़ कर जो करे नित्य ध्यान।
सहजानंद है कह रहे मिटे सभी अज्ञान।

।। चौपाई ।।
जय मृत्युंजय जग पालन कर्ता।अकाल मृत्यु दुख सबके हर्ता।
अष्ट भुजा तन प्यारी ।देख छवि जग मति बिसारी।

चार भुजा अभिषेक कराये।दो से सबको सुधा पिलाये।
सप्तम भुजा मृग मुद्रिका सोहे।अष्टम भुजा माला मन पोवे।

सर्पो के आभूषण प्यारे । बाघम्बर वस्त्र तने धारे।
कमलासन को शोभा न्यारी । है आसीन भोले भण्डारी।

माथे चन्द्रमा चम-चम सोहे। बरस-बरस अमृत तन धोऐ।
त्रिलोचन मन मोहक स्वामी ।घर-घर जानो अन्तर्यामी

वाम अंग गिरीराज कुमारी।छवि देख जाऐ बलिहारी।
मृत्युंजय ऐसा रूप तिहरा ।शब्दों में ना आये विचारा ।

आशुतोष तुम औघड दानी ।सन्त ग्रन्थ यह बात बखानी
राक्षस गुरु शुक्र ने ध्याया ।मृत संजीवनी आप से पाया

यही विद्या गुरु ब्रहस्पती पाये ।माक्रण्डेय को अमर बनाये ।
उपमन्यु अराधना किनी। अनुकम्पा प्रभु आप की लीनी।

अन्धक युद्ध किया अतिभारी। फिर भी कृपा करि त्रिपुरारी।
देव असुर सबने तुम्हें ध्याया।मन वांछित फल सबने पाया।

असुरों ने जब जगत सताया।देवों ने तुम्हें आन मनाया।
त्रिपुरों ने जब की मनमानी।दग्ध किये सारे अभिमानी।

देवों ने जब दुन्दुभी बजायी।त्रिलोकी सारी हरसाई।
ई शक्ति का रूप है प्यारे।शव बन जाये शिव से निकारे।

नाम अनेक स्वरूप बताये।सब मार्ग आप तक जाये।
सबसे प्यारा सबसे न्यारा।तैतीस अक्षर का मंत्र तुम्हारा।

तैतीस सीढ़ी चढ़ कर जाये ।सहस्त्र कमल में खुद को पाये।
आसुरी शक्ति नष्ट हो जाये।सात्विक शक्ति गोद उठाये।

श्रद्धा से जो ध्यान लगाये ।रोग दोष वाके निकट न आये।
आप ही नाथ सभी की धूरी।तुम बिन कैसे साधना पूरी।

यम पीड़ा ना उसे सताये।मृत्युंजय तेरी शरण जो आये।
सब पर कृपा करो हे दयालु।भव सागर से तारो कृपालु।

महामृत्युंजय जग के अधारा ।जपे नाम सो उतरे पारा
चार पदार्थ नाम से पाये।धर्म अर्थ काम मोक्ष मिल जाये।

जपे नाम जो तेरा प्राणी ।उन पर कृपा करो हे दानी ।
कालसर्प का दुःख मिटावे ।जीवन भर नहीं कभी सतावे ।

नव ग्रह आ जहां शीश निवावे।भक्तों को वो नहीं सतावे।
जो श्रद्धा विश्वास से धयाये ।उस पे कभी ना संकट आये।

जो जन आपका नाम उचारे ।नव ग्रह उनका कुछ ना बिगाड़े।
तेंतीस पाठ करे जो कोई ।अकाल मृत्यु उसकी ना होई।

मृत्युंजय जिन के मन वासा ।तीनों तापों का होवे नासा।
नित पाठ उठ कर मन लाई।सतो गुणी सुख सम्पत्ति पाई।

मन निर्मल गंगा सा होऐ।ज्ञान बड़े अज्ञान को खोये॥
तेरी दया उस पर हो जाए।जो यह चालीसा सुने सुनाये।।

।। दोहा ।।
मन चित एक कर जो मृत्युंजय ध्याये।
सहज आनंद मिले उसे सहजानंद नाथ बताये।।
इति श्री मृत्युंजय चालीसा ।

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